संक्षारण - धातु का नमी और वायु से क्रिया करके धीरे-धीरे नष्ट या छह होने की प्रक्रिया को संक्षारण कहते हैं। संक्षारण का अर्थ होता है नष्ट होना । अधिक क्रियाशील धातु का संक्षारण अधिक होता है और कम क्रियाशील धातु का संक्षारण कम होता है जैसे लोहे में जंग का लगना पीतल के पात्र में हरे रंग के धब्बे का बनना आदि
संक्षारण की क्रियाविधि - संक्षारण की प्रक्रिया में धातु ऑक्सीजन व नमी की उपस्थिति में सरलता से इलेक्ट्रॉन का त्याग करती है तथा ऑक्सीजन इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करती है धातुओं आयनो के ऑक्साइड आयनों के साथ क्रिया से धातु का आक्साइड बन जाता है अतः संक्षारण की प्रक्रिया के लिए ऑक्सीजन एवं नमी का होना आवश्यक है उदाहरण के लिए लोहे पर जंग, जल एवं आक्सीज़न की उपस्थिति में ही लगता है।
धातु का वह बिंदु जिस पर यह क्रिया होती है एनोड की तरह कार्य करता है क्योंकि धातु इलेक्ट्रॉनों को त्यागती है एनोड पर होने वाली अभिक्रिया निम्नलिखित है -
इस प्रकार मुक्त हुए यह इलेक्ट्रॉन धातु से होकर गति करते हैं तथा H+की उपस्थिति में O₂ को अपचयित कर देते हैं जिस बिंदु पर यह अभिक्रिया होती है वह कैथोड की तरह व्यवहार करता है -
O₂ का अपचयन H+ आयन की उपस्थिति में होता है अतः H+ की अनुपस्थिति में जंग नहीं लगती वायु में CO2 की उपस्थिति नमी के साथ मिलकर H₂CO₃ बनाती है जो अपने वियोजन के फल स्वरुप H+ आयन की सांद्रता बढ़ा देते हैं यही कारण है कि CO2 की उपस्थिति में जंग अधिक लगती है जब Ph का मान 9 से अधिक हो जाता है तब जंग नहीं लगती इस प्रकार उपयुक्त प्रक्रिया में होने वाली रेडॉक्स अभिक्रिया निम्न है -
रेडॉक्स अभिक्रिया में बना H+ पुनः O₂ जल से क्रिया कर Fe₂O₃ बनाता है जिसे जंग कहते हैं जंग का सूत्र Fe2O3. xH2O होता है -लोहे के संक्षारण की क्रियाविधि -
संक्षारण को प्रभावित करने वाले कारक -
- धातु का अधिक क्रियाशील होना
- धातुओं में अशुद्धियों का होना
- हाइड्रोजन आयन की उपस्थिति का होना
- धातु को नमी और वायु से दूर रखना चाहिए
- धातु में पेंट या वार्निश पोत देना चाहिए
- स्नेहक पदार्थ का प्रयोग करना चाहिए
- धातु का गैल्वनीकरण कर देना चाहिए
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